गिलहरी और उसका नटखट मित्र

गिलहरी और उसका नटखट मित्र

गिलहरी और उसका नटखट मित्र

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एक बार की बात है, एक हरी-भरी जंगल में एक गिलहरी रहती थी। वह बहुत चंचल और चतुर थी। गिलहरी हमेशा अपने दोस्तों के साथ खेलती थी, लेकिन उसका सबसे नटखट मित्र एक बंदर था। बंदर हमेशा कुछ नया करने के लिए गिलहरी को उकसाता रहता था।

एक दिन, बंदर ने गिलहरी से कहा, "चलो, आज हम एक नई मजेदार चीज़ करते हैं! जंगल के उस ऊँचे पेड़ पर चलकर देखते हैं कि वहाँ से दृश्य कैसा है।" गिलहरी ने थोड़ी घबराते हुए कहा, "लेकिन वह बहुत ऊँचा है। मुझे डर लग रहा है।"

बंदर ने हँसते हुए कहा, "डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, हम कोशिश करते हैं।" गिलहरी ने अपनी दोस्ती की भावना को समझते हुए बंदर की बात मान ली। दोनों ने मिलकर पेड़ पर चढ़ना शुरू किया।

बंदर तेज़ी से चढ़ रहा था, लेकिन गिलहरी धीमे-धीमे और सावधानी से चढ़ रही थी। थोड़ी देर में, बंदर पेड़ की ऊँचाई पर पहुँच गया, लेकिन गिलहरी आधे रास्ते पर ही रुक गई। वह नीचे देखने लगी और उसे अपने डर का एहसास हुआ।

बंदर ने गिलहरी को पुकारा, "तुम यहाँ क्यों रुकी हो? आओ, और ऊपर आओ! यहाँ से दृश्य बहुत सुंदर है!" लेकिन गिलहरी ने कहा, "नहीं, मैं आगे नहीं बढ़ सकती। मुझे बहुत डर लग रहा है।"

बंदर ने सोचा कि वह गिलहरी को डराने के लिए एक मज़ेदार चीज़ करेगा। उसने अचानक एक शाखा पर कूदकर एक तेज़ आवाज़ की। गिलहरी डर गई और उसे संभलना मुश्किल हो गया। उसने संतुलन खो दिया और एक झटके में नीचे गिरने लगी। लेकिन गिलहरी ने तात्कालिकता से अपनी उँगलियों का उपयोग करके एक दूसरी शाखा को पकड़ लिया।

बंदर ने देखा कि गिलहरी ने कितनी समझदारी से अपने डर पर काबू पाया। वह नीचे उतर आया और गिलहरी से बोला, "वाह! तुमने तो बहुत अच्छा किया। मुझे पता था कि तुम यह कर सकती हो!" गिलहरी ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुमने मुझे डराया, लेकिन मैंने अपने डर पर काबू पा लिया।"

सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि डर के सामने खड़ा होना और अपने डर को पार करना ही असली साहस है। हमें कभी भी अपने डर से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसे स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए। हमेशा याद रखें, सच्चा मित्र हमें मुश्किल समय में प्रोत्साहित करता है, लेकिन हमें खुद पर भी विश्वास रखना चाहिए।

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