कछुआ और खरगोश की दौड़

कछुआ और खरगोश की दौड़

कछुआ और खरगोश की दौड़

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एक जंगल में एक कछुआ और एक खरगोश रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ने की क्षमता के लिए बहुत प्रसिद्ध था, जबकि कछुआ अपनी धीमी गति के लिए जाना जाता था। खरगोश अक्सर कछुए का मज़ाक उड़ाता और कहता, "तुम जैसे धीमे प्राणी के साथ मुझे कोई मुकाबला ही नहीं है।"

एक दिन कछुए ने खरगोश को चुनौती दी, "चलो, एक दौड़ करते हैं और देखते हैं कि कौन जीतता है।" खरगोश ने इस चुनौती को मज़ाक में लिया और तुरंत मान गया। उसने सोचा कि कछुए को हराना उसके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है।

दौड़ शुरू हुई। खरगोश ने तेज़ी से दौड़ना शुरू कर दिया और कछुआ धीरे-धीरे अपनी चाल से चलता रहा। थोड़ी देर में खरगोश ने देखा कि वह कछुए से बहुत आगे निकल चुका है। उसने सोचा, "कछुआ तो बहुत पीछे है। मैं तो आराम से यहाँ सो सकता हूँ और जब वह नज़दीक आएगा, तब दौड़ लूँगा।"

यह सोचकर खरगोश एक पेड़ के नीचे आराम से सो गया। दूसरी ओर, कछुआ बिना रुके अपनी धीमी गति से आगे बढ़ता रहा। उसने न तो कहीं आराम किया, न ही रुकने का सोचा। धीरे-धीरे चलते हुए कछुआ खरगोश को पीछे छोड़कर फिनिश लाइन के पास पहुँच गया।

जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कि कछुआ फिनिश लाइन के पास पहुँच चुका था। वह तेजी से दौड़ा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कछुआ जीत चुका था।

सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि लगातार और स्थिर मेहनत से ही सफलता मिलती है। कभी-कभी तेज़ी से शुरुआत करना ही सब कुछ नहीं होता; धैर्य, लगन और निरंतरता से भी बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। अहंकार और आलस्य हमें असफलता की ओर ले जाते हैं।

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